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Teachers day speech in Hindi शिक्षक दिवस भाषण व निबंध Speech / Essay in Hindi 5 September, Dr. sarvapalli radhakrashnn importance of teachers
शिक्षक या अध्यापक वो व्यक्ति होता है जो दुसरो को पढ़ा-लिखा कर शिक्षा देने का काम करता है| महर्षि अरविंद ने शिक्षको के सम्बन्ध में कहा है की
“शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते है | वे संसक्तो की जड़ो में खाद देते है और अपने श्रम से सींचकर उन्हें निर्मित करते है |”
इस प्रकार एक विकसित, समृद्ध और खुशहाल देश व विश्व के निर्माण में शिक्षको की भूमिका ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है | बचपन की अवस्था में मन-मस्तिष्क एक कोरे कागज़ के समान होता है | इस कोरे कागज़ रूपी मन-मस्तिष्क में विद्यालयों के शिक्षको के द्वारा शिक्षा के माध्यम से शुरुआत के 5 – 6 वर्षो में दिए संस्कार एवं गुण अपने सम्पूर्ण जीवन को सुन्दर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है |
एक अच्छा शिल्पकार किसी भी प्रकार के पत्थर को ट्रैश कर उसे सुन्दर आकृति का रूप दे देता है किसी भी सुन्दर मूर्ति को तराशने में शिल्पकार की बहुत बड़ी भूमिका होती है | इसी प्रकट एक अच्छा कुम्हार वही होता है जो गीली मिटटी को सही आकर प्रदान कर उसे समाज के लिए उपयोगी वर्तन अथवा एक सुन्दर मूर्ति का रूप दे देता है |
यदि शिल्पकार तथा कुम्हार द्वारा तैयार की गयी मूर्ति और वर्तन सुन्दर नही है तो वह जिस स्थान पर रखे जायेगे उस स्थान को और अधिक विकृत स्वरुप ही प्रदान करेंगे |
शिल्पकार और कुम्हार की भांति स्कुलो और शिक्षको का यह प्रथम दायित्व एवं कर्त्तव्य है की वह अपने वहां अध्ययनरत सभी बच्चो को इस प्रकार से सँवारे और सजाये की उनके द्वारा शिक्षित किये गए सभी बच्चे “विश्व का प्रकाश” बनाकर सारे विश्व को अपनी रौशनी से प्रकाशित करें |
भारत देश हमेशा से गुरुओ व शिक्षको का देश रहा है, इस देश में शिक्षको-अध्यापको का मान सम्मान हमेशा से बहुत अधिक रहा है जो आजकल प्रायः नगण्य है | आजकल भारत में भी संसार के अन्य देशो के समान शिक्षा का लेन देन एक प्रकार का व्यवसाय बन कर रह गया है | यह स्थिति को सराहनीय तो नही है |
शिक्षक दिवस का महत्व समझ जाये ; शिक्षक भी शिक्षा देने को व्यवसाय न मानकर उसे पवित्र कार्य समझे; यही भावना रही है शिक्षक दिवस मनाने के पीछे | शिक्षक दिवस मनाने का सम्बन्ध जोड़ा गया देश के राष्ट्रपति रहे महामहिम सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन के जन्म दिवस के साथ | अर्थात तभी से यह दिवस प्रति वर्ष 5 सितंबर को मनाया जाने लगा | इसके पीछे कारण था उनका आदर्श अध्यापकत्व | वे अपने जीवन में एक कुशल शिक्षक भी रहे थे | शिक्षक दिवस के दिन सभी विद्यालयों में सभाएँ होती है | बच्चो को अध्यापको के मान सम्मान से सम्बंधित प्रेरणा दी जाती है |
किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है। शिक्षा के अनेक आयाम हैं, जो राष्ट्रीय विकास में शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हैं। वास्तविक रूप में शिक्षा का आशय है ज्ञान, ज्ञान का आकांक्षी है-शिक्षार्थी और इसे उपलब्ध कराता है शिक्षक।
प्राचीनकाल की ओर देखें तब भारत में ज्ञान प्रदान करने वाले गुरु थे, अब शिक्षक हैं। शिक्षक और गुरु में भिन्नता है।
- गुरु के लिए शिक्षण धंधा नहीं, बल्कि आनंद है, सुख है।
- शिक्षक अतीत से प्राप्त सूचना या जानकारी को आगे बढ़ाता है, जबकि गुरु ज्ञान प्रदान करता है।
- सूचना एवं ज्ञान में भी भिन्नता है। सूचना अतीत से मिलती है, जबकि ज्ञान भीतर से प्रस्फुटित होता है। गुरु ज्ञान प्रदान करता है और शिक्षक सूचना।
राष्ट्र निर्माण में युवा पीढ़ी की अहम भूमिका है। इस संदर्भ में भारत की स्थिति अत्यधिक शर्मनाक और हास्यास्पद ही मानी जा सकती है। देश में लगातार हो रहे नैतिक एवं शैक्षणिक पतन से हमारे युवा वर्ग पर सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
देश के विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष बेरोजगार नौजवानों की फौज तैयार करते जा रहे हैं। किसी ने ठीक ही कहा है – “सत्ता की नाकामी राजनीतिक टूटन को जन्म देती है।” हमारी राजनीतिक पार्टियां, जातियों में विघटित हो रही हैं। परिणामस्वरूप मानव समाज आत्म केंद्रित और स्वार्थ केंद्रित होता जा रहा है। आज देश की राजनीति में काम और योग्यता का मूल्यांकन न होकर धन, बल और बाहुबल का बोलबाला है।
व्यावसायिकता की आंच से मानवीय संवेदनाएं ध्वस्त हो रही हैं और हमारी कथित भाग्य विधाता शिक्षक समाज राष्ट्र में व्याप्त इस भयावह परिस्थिति को निरीह और असहाय प्राणी बनकर मूकदर्शक की भांति देखने को विवश हैं।
दुर्भाग्य से हमारे देश में समाज के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और आदर प्राप्त “शिक्षक” की हालत अत्यधिक दयनीय और जर्जर कर दी गई है।
शिक्षक शिक्षण छोड़कर अन्य समस्त गतिविधियों में संलग्न हैं। वह प्राथमिक स्तर का हो अथवा विश्वविद्यालयीन, उससे लोकसभा, विधानसभा सहित अन्य स्थानीय चुनाव, जनगणना, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री अथवा अन्य इस श्रेणी के नेताओं के आगमन पर सड़क किनारे बच्चों की प्रदर्शनी लगवाने के अतिरिक्त अन्य सरकारी कार्य संपन्न करवाए जाते हैं।
देश की शिक्षा व्यवस्था एवं शिक्षकों की मौजूदा चिंतनीय दशा के लिए हमारी राष्ट्रीय और प्रादेशिक सरकारें सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं, जिसने शिक्षक समाज के अपने हितों की पूर्ति का साधन बना लिया है। शिक्षा वह है, जो जीवन की समस्याओं को हल करे, जिसमें ज्ञान और काम का योग है?
आज विद्यालय में विद्यार्थी अध्यापक से नहीं पढ़ते, बल्कि अध्यापक को पढ़ते हैं।
वर्षभर उपेक्षा और प्रताड़ना सहन करने वाले समाज के दीनहीन समझे जाने वाले आज के कर्मवीर, ज्ञानवीर पराक्रमी और स्वाभिमानी शिक्षकों को 5 सितंबर को राष्ट्रीय राजधानी सहित देशभर में सम्मान प्रदान कर सरकार शिक्षक दिवस की औपचारिकता पूरी करती है।
संभावना आज की असीमित एवं अपरिमित है। निष्क्रिय समाज सक्रिय दुर्जनों से खतरनाक है। किसी महापुरुष द्वारा व्यक्त यह कथन हमें भयावह परिदृश्य से उबारने की प्रेरणा दे सकता है।
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